भारतीय वैज्ञानिकों ने खोजा टीबी का पूरा इलाज

भारतीय वैज्ञानिकों ने खोजा टीबी का पूरा इलाज - दुनियाभर में हर साल टीबी यानी ट्यूबरकोलॉसिस के 90 लाख नए मामले सामने आते हैं, जिनमें से करीब 32 फीसदी मामले भारत के होते हैं।

इन आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि टीबी की बीमारी दिनों-दिन कितना खतरनाक रूप ले रही है।

भारतीय वैज्ञानिकों ने खोजा टीबी का पूरा इलाज


कुछ वक्त पहले वैज्ञानिकों ने कहा था कि टीबी के बैक्टीरिया ने खुद को इतना अधिक ताकतवर बना लिया है कि उस पर नवनिर्मित दवाएं भी बेअसर हो सकती हैं।

पर अब भारतीय वैज्ञानिकों ने इस गंभीर बीमारी का 100 फीसदी इलाज ढूंढ़ लेने का दावा किया है। कोलकाता के काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल बायोलॉजी

और कोलकाता के ही बोस इंस्टीट्यूट व जाधवपुर यूनिवर्सिटी के कुछ वैज्ञानिकों की टीम ने पता लगाया कि मैक्रोफेज नाम के व्हाइट ब्लड सेल्स द्वारा निर्मित थैलीनुमा स्ट्रक्चर से टीबी का बैक्टीरिया किस तरह रिलीज होता है।

ये स्ट्रक्चर बैक्टीरिया को अपनी गिरफ्त में रखता है और रिलीज नहीं होने देता। वैज्ञानिकों ने सालों तक इस विषय पर शोध किया, लेकिन कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आया।

आखिरकार वैज्ञानिकों को सफलता मिली और उन्होंने पाया कि टीबी का बैक्टीरिया एमपीटी63 नाम का एक प्रोटीन प्रोड्यूस करता है। हो सकता है कि इस प्रोटीन की वजह से ही वह थैलीनुमा स्ट्रक्चर फट जाता हो। 

जब एसिडिटी होती है तो ये प्रोटीन स्ट्रक्चर अपना रूप बदलकर अचानक ही जहरीला रूप ले लेते हैं और मैक्रोफेजेस को नुकसान पहुंचाते हैं। इसकी वजह से इन व्हाइट ब्लड सेल्स की मौत हो जाती है और बैक्टीरिया रिलीज हो जाता है।

स्ट्रक्चरल बायोलॉजी एंड बायोइंफर्मेटिक्स डिवीजन के हेड डॉ. कृष्णानंदा चट्टोपाध्याय ने कहा कि अब उनकी टीम इस शोध में आए परिणामों को टीबी बैसिलस के क्षेत्र में मान्य करने की कोशिश करेगी और देखेगी कि इनका इस्तेमाल टीबी के इलाज की नई तकनीक बनाने के लिए किया जा सकता है या नहीं।

अब इस शोध के बाद वैज्ञानिक ऐसे तरीकों की तलाश करेंगे, जिनके जरिए एमपीटी 63 प्रोटीन के दुष्प्रभावों को कम कर सकें।

ऐसे फैलता है टीबी

टीबी एक संक्रामक रोग है। यह ट्यूबरकोलॉसिस बैक्टीरियम से हवा के जरिए फैलता है। खांसने और छींकने के दौरान मुंह-नाक से निकलने वालीं बारीक बूंदों से यह इंफेक्शन फैलता है।

अगर टीबी मरीज के बहुत पास बैठकर बात की जाए और वह खांस नहीं रहा हो, तब भी इसके इंफेक्शन का खतरा हो सकता है। टीबी के बैक्टीरिया से लडऩे में मैक्रोफेज नाम के व्हाइट ब्लड सेल्स मदद करते हैं। 

इस लिहाज से मैक्रोफेज हमारे इम्यून सिस्टम का एक जरूरी हिस्सा होते हैं। ये सेल्स टीबी के बैक्टीरिया को मारते नहीं हैं, बल्कि उसके इर्द-गिर्द एक थैली जैसा निर्माण कर लेते हैं।

इस वजह से यह बैक्टीरिया सालों तक सुस्त पड़ा रहता है, लेकिन जब शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है तो यह थैलीनुमा स्ट्रक्चर फट जाता है और बैक्टीरिया खून में रिलीज हो जाता है, जो टीबी को जन्म देता है।

भारतीय वैज्ञानिकों ने खोजा टीबी का पूरा इलाज

Follow us: Facebook
Follow us: Twitter
Youtube

Post Business Listing - for all around India

Read Rajputana News Epaper
और नया पुराने