आखिर इतनी संख्या में लोग पत्थरबाजी कैसे करने लगे कुछ बातें तो पहले से ही सामने हैं। एक समूह देश भर में नागरिकता संशोधन कानून, एनपीआर और एनआरसी के नाम पर झूठ और गलतफहमी के द्वारा मुसलमानों के अंदर भय पैदा करने तथा उनके एक बड़े तबके को उकसाने में सफल हो चुका है।
यह तथ्य बार-बार स्पष्ट किया जा चुका है कि नागरिकता कानून से भारत के नागरिकों का कोई संबंध नहीं है।
राजधानी दिल्ली में हुई हिंसा और आगजनी डरावनी और चिंताजनक है। सुनियोजित साजिश के बिना इतने व्यापक पैमाने पर हिंसा नहीं हो सकती। दिल्ली में स्थिति बिगाडऩे के संकेत तभी मिलने आरंभ हो गए थे जब जाफराबाद में सड़क को घेरकर धरना आरंभ किया गया। इससे साफ हो गया था कि जगह-जगह शाहीन बाग पैदा करने की तैयारी हो रही है। जब एक समूह ने इसके विरोध में मौजपुर में धरना दिया तो उस पर पथराव किया गया और वहीं से स्थिति बिगडऩे लगी।
शाहीन बाग की तरह ही यहां भी पुलिस की विफलता स्पष्ट है। पूरे घटनाक्रम का विश्लेषण कीजिए तो यह समझते देर नहीं लगेगी कि धरना के समानांतर हिंसा, आगजनी और दंगों की भी तैयारी की गई थी।
इसी तरह एनपीआर 2010 में हुआ, 2015 में अद्यतन किया गया और यह सामाजिक-आर्थिक जनगणना है जो अब मूल जनगणना का भाग है। एनआरसी पर अभी सरकार के अंदर औपचारिक फैसला नहीं हुआ है। अगर कल फैसला हुआ और उसमें कोई आपत्तिजनक या अस्वीकार्य पहलू होगा तो उसका विरोध किया जाएगा।
जो अभी है ही नहीं उसका विरोध करने का कारण क्या हो सकता है यह प्रश्न और ये तथ्य उनके लिए मायने रखते हैं जिनका उद्देश्य सच समझना हो। जिनका उद्देश्य सरकार के विरुद्ध पूरे समुदाय को भड़काकर स्थिति बिगाडऩी हो उनके लिए इनका कोई अर्थ नहीं है। ये समाज विरोधी, सांप्रदायिक और उपद्रवी शक्तियां हैं जिनके इरादे खतरनाक हैं। दिसंबर की जामिया हिंसा को लेकर दिल्ली पुलिस के आरोप पत्र में ही इस तरह की साजिश का विवरण है।
जो लोग किसी तरह कानून और व्यवस्था की समस्या पैदा कर सरकार को बदनाम करने की फिराक में थे उनके लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा भी बड़ा अवसर था। इसमें दोनों तरह की शक्तियां थीं।
एक वे जो धरना-प्रदर्शन से ही स्थिति को बिगाड़ देना चाहते थे तथा दूसरे वे जो हिंसा द्वारा ऐसा करने की तैयारी में थे। वे चाहते थे कि किसी तरह दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश तक स्थिति इतनी बिगाड़ दी जाए जिससे ट्रंप की नजर तो जाए ही, उनको कवर कर रही अंतरराष्ट्रीय मीडिया के फोकस में भी विरोध आ जाए।
अलीगढ़ में अशांति पैदा करने की कोशिशें पुलिस और प्रशासन की सक्रियता से विफल कर दी गईं, किंतु दिल्ली में ऐसा नहीं हो सका। समझने की आवश्यकता है कि शाहीन बाग का जो धरना सामने दिख रहा है उसके पीछे कई प्रकार के शरारती दिमाग और खतरनाक विचार हैं।
ई-न्यूज पेपर के लिए यहाँ क्लिक करें, 27 फरवरी 2020
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