गुलाबी नगरी में गूंजने लगे गणगौर के गीत - जयपुर। होली और शीतलाष्टमी का पर्व धूमधाम से सम्पन्न होने के साथ ही अब गुलाबी नगरी में गणगौर के गीत गूंजने लगे हैं।
यह सिलसिला आगामी 27 मार्च तक जारी रहेगा। रंग—बिरंगी और पारंपरिक परिधानों में श्रंगारित महिलाएं और युवतियां बैंड बाजों के साथ इन छोटे बच्चों की बारात में जमकर नाच भी रही हैं।
'गढन कोटा सू गवरल उतरी, गवरल रूडो ऐ नजारो तीखो नैणो रो, 'चढ़ती रा गवरल बाजै घूघरा, उतरती री रमझोळ, 'म्हारी चांद गवरजा, गवर्यो री मौज्यों बीकानेर में गणगौर गीतों की गूंज शहर में शुरू हो गई है।
बालिकाएं और पुरूषों की मण्डलियो ने पारम्परिक गणगौरी गीतों का गायन शुरू कर दिया है। धुलण्डी के दिन से शुरू हुए गणगौर पूजन उत्सव में जहां बालिकाएं अच्छे वर एवं अच्छे घर की कामना को लेकर मां गवरजा का पूजन-अनुष्ठान कर रही है, वहीं पुरुषों ने भी मां गवरजा का स्तुति गान शुरू कर दिया है।
यह बीकानेर की परंपरा में शामिल हो गया है। इस पर्व में बालिकाएं व महिलाएं ही गणगौर का पूजन करती और गीत गाती है। लेकिन राजस्थान के बीकानेर में महिलाओं के साथ-साथ पुरुष भी गणगौर के गीत गाते हैं।
पुरुषों ने इसके लिए बकायदा गीत मंडलिया बना रखी है, जो बुलावे पर लोगों के घर पहुंचकर गणगौर के पारम्परिक गीत निशुल्क गाते है।
हालांकि इस परम्परा का शुरूआती समय बताना तो मुश्किल है, लेकिन लोगों का कहना है कि यह परम्परा रियासतकाल से चल रही है। पुरुषों द्वारा गाए जाने वाले गीतों को सुनने के लिए देश में विभिन्न स्थानों पर रहने वाले प्रवासी बीकानेरी भी बीकानेर पहुंचते है।
गणगौर पूजन के दौरान इन पुरुष मंडलियों की मांग बनी रहती है।
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सोमवार को पार्कों, मंदिरों और घरों में छोटे बच्चे दूल्हा दुल्हन के रूप में नजर आए, जिनका महिलाओं ने पूजन किया।
यह सिलसिला आगामी 27 मार्च तक जारी रहेगा। रंग—बिरंगी और पारंपरिक परिधानों में श्रंगारित महिलाएं और युवतियां बैंड बाजों के साथ इन छोटे बच्चों की बारात में जमकर नाच भी रही हैं।
अच्छे घर और वर की कामना
बालिकाएं अच्छे घर और वर की कामना को लेकर गणगौर का पूजन कर रही है। वही घर-घर में महिलाएं गणगौर को पारम्परिक रूप में सजाने में जुट गई। वही दूसरी तरफ गली मोहल्लों में पारम्परिक गणगौरी गीत भी गूंजने शुरू हो गए है।'गढन कोटा सू गवरल उतरी, गवरल रूडो ऐ नजारो तीखो नैणो रो, 'चढ़ती रा गवरल बाजै घूघरा, उतरती री रमझोळ, 'म्हारी चांद गवरजा, गवर्यो री मौज्यों बीकानेर में गणगौर गीतों की गूंज शहर में शुरू हो गई है।
बालिकाएं और पुरूषों की मण्डलियो ने पारम्परिक गणगौरी गीतों का गायन शुरू कर दिया है। धुलण्डी के दिन से शुरू हुए गणगौर पूजन उत्सव में जहां बालिकाएं अच्छे वर एवं अच्छे घर की कामना को लेकर मां गवरजा का पूजन-अनुष्ठान कर रही है, वहीं पुरुषों ने भी मां गवरजा का स्तुति गान शुरू कर दिया है।
यहां पुरुष भी मनाते हैं गणगौर
हालांकि गणगौर को महिलाओं का पर्व कहा जाता है। लेकिन बीकानेर में पुरुष भी गणगौर पर्व को पारंपरिक रूप से मनाते है और गणगौर पूजन उत्सव के दौरान गणगौरी गीत गाते है।यह बीकानेर की परंपरा में शामिल हो गया है। इस पर्व में बालिकाएं व महिलाएं ही गणगौर का पूजन करती और गीत गाती है। लेकिन राजस्थान के बीकानेर में महिलाओं के साथ-साथ पुरुष भी गणगौर के गीत गाते हैं।
पुरुषों ने इसके लिए बकायदा गीत मंडलिया बना रखी है, जो बुलावे पर लोगों के घर पहुंचकर गणगौर के पारम्परिक गीत निशुल्क गाते है।
हालांकि इस परम्परा का शुरूआती समय बताना तो मुश्किल है, लेकिन लोगों का कहना है कि यह परम्परा रियासतकाल से चल रही है। पुरुषों द्वारा गाए जाने वाले गीतों को सुनने के लिए देश में विभिन्न स्थानों पर रहने वाले प्रवासी बीकानेरी भी बीकानेर पहुंचते है।
गाते हैं पारम्परिक गीत
पुरुष मंडलियो की ओर से गणगौर के पारम्परिक गीत गाए जाते है। इन गीतों को सुनने के लिए बड़ी संख्या में महिलाएं भी मौजूद रहती है।गणगौर पूजन उत्सव के दौरान शाम से देर रात तक पुरुष गणगौर प्रतिमाओं के समक्ष पारम्परिक गीत गाते है। हर मंडली में बीस से तीस कलाकार है, जो प्रतिदिन दो से तीन स्थानों पर गणगौर के गीत निशुल्क गाते है।
गणगौर पूजन के दौरान इन पुरुष मंडलियों की मांग बनी रहती है।
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